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मुंब्रा में सिर्फ चुनाव का हंगामा, विकास झिरो!

मोमिना जाफरी । मुंब्रा । 24 जुलाई 2025

2024 के लोकसभा चुनाव के दोरान मुंब्रा-कलवा में राजनेताओं द्वारा बड़ा उम्मीदों का पहाड़ खड़ा किया गया था। हर बार कि तरह इस बार भी नेताओं ने कई सारे बड़े बड़े वादे किए थे बेहतर सडक, साफ पानी, स्वास्थ्य केंद्र, अच्छी शिक्षा और अन्य वादे, चुनाव हुए करीब 9 महीने बीत चुके है, इतने महिनो बाद भी ग्राउंड रियलिटी में कोई बदलाव नजर नहीं आया ।

हर बार की तरह इस बार भी आम आदमी सिर्फ वोट बँक बन कर रह गया । चुनाव के वक़्त नेता सबको मिलते है, वादे करते है, रैलिज निकालते है, हर तरफ सिर्फ और सिर्फ उम्मीदों का शोर सुनाई देता है पर जैसे ही चुनाव खत्म वैसे ही यह शोर भी ख़त्म, अब हर मुद्दे का जवाब ख़ामोशी होती है। यही कहानी पहले भी दोहराई जाती थी और अब भी दोहराई जा रही है।


ना पहले अच्छी सड़क थी ना अब है, पानी का मसाला ना पहले सुलझाया गया था ना अब सुलझाया जा रहा है, मुंब्रा स्टेशन को लेकर भी कई बड़े वादे किए गए थे लेकिन ना पहले फास्ट ट्रेन स्टेशन पर रुकती थी ना अब, स्वास्थ्य व्यवस्था तो पूछो ही मत।स्वास्थ्य व्यवस्था में मुंब्रावासी पहले से बदतर हालात झेल रहे है। कुछ दिनों में मुंब्रा का पहाड़ नहीं बल्कि मुंब्रा में कचरों का पहाड़ आकर्षित स्थल बन जाएगा। पहले कई पेशेंटस अस्पताल में बुरी स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण मर रहे थे लेकिन अब लगता है कुछ दिनों में मुंब्रा की ट्रैफिक में अटक कर पेशेंटस मर जाएंगे। अवैध इमारतों के कारण मुंब्रा जैसे छोटे इलाके में 12 लाख से ज़्यादा आबादी पल रही है और दिन-ब-दिन यह आबादी बढ़ती ही जा रही है।

मुंब्रा-कलवा लोगों के लिए आंदोलन का स्थल बन गया है। आए दिन लगातार यहां नए-नए पॉलीटिकल पार्टी उभरती हुई नजर आ रही है और नए-नए मुद्दे पर आंदोलन करते हुए नेता नजर आते हैं। आंदोलन का असर बताकर आम नेता बैठक भी बुलाते हैं, फोटो सेशन होते है, काफी मीडिया कवरेज भी मिलती है  लेकीन इन सभी बेठकों का कोई ठोस नातीजा सामने नहीं आता है। ना कोई टाइमलाइन ना कोई डेडलाइन।

अब सवाल यह है की कब तक मुंब्रा के लोग सिर्फ वोट देने के लिए याद किए जाएंगे? और सब से बड़ा सवाल कि क्या इस बार भी मुंब्रा का विकास एक और चुनाव तक टाल दिया जाएगा ? मुंब्रा जैसे शहर में, जहां युवा आबादी और शिक्षा की क्षमता काफी ज्यादा है, वहां विकास रुका होना सिर्फ सरकार की असफ़लता नहीं, बाल्की राजनीतिक इरादों पर भी एक बड़ा सवाल पैदा करता है।

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